Ahoi Ashtami – Vrat Katha & Puja Vidhi

Ahoi Ashtami is a Hindu festival celebrated on the 8th day of Krishna Paksha of Kartik month. It falls approximately 8 days before Diwali and 4 days after Karwachauth. On this day, mothers used to fast from dawn to dusk for the well-being of their sons. However, now mothers observe fast for all of their children, for sons as well as daughters too.

On the day of fast, women bath early and take a pledge or Sankalp to keep the Ahoi Ashtami fast for the well-being of their children. Similar to Karwachauth, even Ahoi Ashtami is a strict fasting day where women abstain from drinking a drop of water throughout the day until they see the stars. The fast is considered complete after sighting stars in the sky and is then broken according to the family traditions.

Ahoi Ashtami Puja Vidhi

Ahoi Ashtami Puja preparations are done during the evening before the sunset. Women either draw the image of Goddess Ahoi on the wall or stick the ready-made posters available in the market. It is to be noted that any image of Goddess Ahoi used for Puja must have eight corners, signifying the association of the festival with Ashtami. Along with Goddess Ahoi, the images of Sei (सेई) (i.e. hedgehog and its children) should also be drawn near to the Goddess.




Once this is done, sanctify the place of puja with holy water and draw a rangoli on the floor or on a stool with wheat. Also, place one water-filled Kalash at the place of Puja and cover the mouth of the Kalash with an earthen lid.

Mothers usually keep a water-filled small earthen pot, preferably Karwa, on the top of this Kalash. This lid of this Kkarwa is covered and the nozzle if blocked with the shoots of the “doob” grass, a grass that is considered sacred for Puja.  The seven shoots of the grass are also offered to Goddess Ahoi and Sei during Puja.

After you are done with the preparations, join the other female members of the family to perform Puja. The best time to perform Ahoi Ashtami Puja is during the evening time just after sunset. During Puja, worship Ahoi Mata with all rituals and narrate the story of Ahoi Mata. There are several versions of Ahoi Ashtami story but the most prominent of them all is mentioned below.

Ahoi Ashtami Vrat Katha

एक साहुकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ तथा एक बेटी थी दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी का सांतो बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में मिट्टी खोद रही थी । वही स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहु माता बोली कि मै तेरी कोख बाँधूँगी। तब ननद अपनी सातो भाभियो से बोली कि तुमसे से मेरे बदले कोख बधवाने से इन्कार कर दिया परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नही बँधवाऊँगी तो सासू नाराज होगी । ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बँधवा ली। इसके बाद जब उससे जो लडका होता तो सात दिन बार मर जाता । एक दिन उसने पंडत का बुलाकर पूछा मेरी संतान सातवे दिन क्यो मर जाती है? तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पुजा करो । सुरही गाय स्याहु माता की भायली है, वह तेरी कोख खोलेगी तब तेरा बच्चा जियेगा । इसके बाद से वह बहु प्रातः काल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती । गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूँगी। गौ माता खूब तडके उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ। इच्छानुसार जो चाहे माँग लो। तब साहूकर की बहू बोली  कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है, सो मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा अच्छा । अब तो गौ माता समुंद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली । रास्ते में कडी धूप थी सो वो दोनो एक पेड के नीचे गरूड पंखानी(पक्षी) का बच्चा था। साँप उसको डसने लगा तब साहुकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चो का बचा लिया । थोडी देर मे गरूड पंखनी आई । जो वहा खून पडा देखकर साहूकार की बहू को चोच मारने लगी। तब साहूकारनी बोली कि मैने तेरे बच्चो को नही मारा बल्कि साँप मेरे बच्चे को डसने को आया था मैने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरूड पंखनी बोली कि माँग तू क्या माँगती है? वह बोली सात समुद्र पर स्याऊ माता के पास पहुचा दे। गरूड पंखनी ने दोनो को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुचा दिया। स्याऊ माता उन्हे देखकर बोली कि बहन बहुत दिनो मे आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूँ पड गई। तब सुरही के कहने पर साहुकार की बहु ने सलाई  से उनकी जुएँ निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न हो बोली कि तुने मेरे सिर मे बहुत सलाई डाली है इसलिये सात बेटे और बहु होगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नही है सात बेटा कहाँ से होगे। स्याऊ माता बोली- वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी कुण्ड पर कंकरी होऊँ। जब साहुकार की बहु बोली मेरी  कोख तो तुम्हारे पास बन्द पडी है यह सुनकर स्याऊ माता बोली कि तुने मुझे बहुत ठग लिया, मे तेरी कोख खोलती जो नही परन्तु अब खोलनी पडेगी।

जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुए मिलेगी तू जाकर उजमन करियो। सात अहोई बनाकर सात कढाई करियो। वह लौटकर घर आई तो देखा सात बेटे सात बहुए बैठी है वह खुश होगई। उसने सात अहोई बनाई, साज उजमन किए तथा सात कढाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस मे कहने लगी कि जल्दी जल्दी नहाकर पूजा कर लो, कही छोटी बच्चो को याद करके रोने लग। थोडी देर में उन्होने अपने बच्चो से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि वह आज अभी तक रोई क्यो नही। बच्चो ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ माडँ रही है खूब उजमन हो रहा है। यह सूनते ही जेठानियो दौडी-दौडी उसके घर आई और जाकर कहने लगी कि तूने कोख कैसे छुडाई? वह बोली तुमने तो कोख बधाई नही सो मैने कोख खोल दी है। स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो। कहने वाले तथा सुनने वाले की तथा सब परिवार की कोख खोलियो।

Categories: Customs & Traditions,Festivals

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